Lifting Indian Muslims from the Bottom
of the Development and Education Ladder
A Transformative Agenda for the 21st Century

2022

रिपोर्ट का सारांश

भारतीय मुसलमानों को विकास एवं शिक्षा के निचले पायदान से ऊपर उठाना:
21वीं सदी के लिए एक परिवर्तनकारी एजेंडा- 2022

बहुत कम लोगों को यह बात मालूम है कि मुसलमान - जो अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में नहीं आते हैं - भारत में शिक्षा के लिहाज से सबसे ज्यादा पिछड़े समूह हैं। मुसलमानों में स्कूली शिक्षा एवं उच्च शिक्षा के लिए नामांकन की दर सबसे कम है। बेहद कम लोग यह बात जानते हैं कि, लंबे समय तक कुपोषण की वजह से 5 साल से कम उम्र के भारतीय मुस्लिम बच्चों का समुचित शारीरिक विकास नहीं होने की दर सबसे ज़्यादा है। स्कूलों और कॉलेजों की शिक्षा प्राप्त नहीं करने वाले 25 साल से कम उम्र के ग़रीब और निम्न-मध्यम वर्ग के भारतीय मुस्लिम युवाओं की संख्या 31 मिलियन है। कम पढ़े-लिखे होने तथा गणित का ज्ञान नहीं होने की वजह से इन युवाओं की कोई पहचान नहीं है और उनकी पूरी तरह से अनदेखी की गई है, जिनकी संख्या औपचारिक तरीके से शिक्षा पाने वाले वंचित समुदाय के अपने साथी मुस्लिम छात्रों से कहीं ज़्यादा है।

कुल मिलाकर, मुसलमानों के विकास एवं शिक्षा में पिछड़ेपन के ये तीनों संकेतक उनके जीवन के हर पहलू को बड़े पैमाने पर प्रभावित करते हैं: जिसमें उनकी साक्षरता एवं गणित का ज्ञान, अकादमिक प्रदर्शन एवं बौद्धिक विकास, सेहत, नौकरी, रोजगार के योग्य बनने, तथा जीवन को बेहतर बनाने के लिए आवश्यक कौशल एवं ज्ञान के साथ-साथ भारत के राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक विकास में उनका योगदान शामिल है।

अनुमानों के अनुसार, वर्ष 2050 तक भारत में मुसलमानों की आबादी लगभग 310 मिलियन तक पहुँच जाएगी, जो पाकिस्तान और इंडोनेशिया सहित दुनिया के किसी भी अन्य देश में मुसलमानों की आबादी से कहीं अधिक होगी। वर्ष 2020 में, मुसलमानों की जनसंख्या देश की कुल आबादी का लगभग 15% है। इसमें सुविधाओं से वंचित ग़रीब और निम्न-मध्यम वर्ग के मुसलमानों की आबादी 80% से अधिक है। इसी वजह से भारतीय मुसलमानों की शिक्षा की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए, इस चर्चा को स्कूलों और उच्च शिक्षा के साथ-साथ उर्दू माध्यम की स्कूली शिक्षा और मदरसों तक बेहतर पहुंच के दायरे में सीमित नहीं रखा जा सकता है। अगर बदलाव लाने वाली शिक्षा मुसलमानों को उस दलदल से बाहर निकालने के लिए सबसे अहम है, जिसमें वे खुद को फंसा हुआ पाते हैं, तो देश की शिक्षा व्यवस्था के तहत 25 साल से कम उम्र के ग़रीब एवं निम्न-मध्यम वर्ग के मुसलमानों के विकास तथा शिक्षा पर विशेष ध्यान देना होगा।

'भारतीय मुसलमानों को विकास एवं शिक्षा के निचले पायदान से ऊपर उठाना: 21वीं सदी के लिए एक परिवर्तनकारी एजेंडा- 2022' नाम से प्रकाशित इस स्वतंत्र एवं अनायुक्त (नॉन-कमीशन्ड) रिपोर्ट में एक नए एजेंडे के चार प्रमुख मुद्दों को उजागर किया गया है, जिन्हें लागू करना आवश्यक है:

1. औपचारिक शिक्षा के दायरे से परे, शिक्षा को बड़े पैमाने पर परिभाषित किया जाना चाहिए। इसके नए लक्ष्यों के तहत 25 साल से कम उम्र के 79 मिलियन ग़रीब और निम्न-मध्यम वर्ग के मुसलमानों के विकास एवं शिक्षा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, तथा इन पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। ये लक्ष्य इस प्रकार हैं: जन्म से लेकर 6 साल तक के 21 मिलियन बच्चों के लिए 'प्रारंभिक बाल्यावस्था विकास एवं शिक्षा' (ECCE) कार्यक्रमों को बेहतर बनाना एवं इसके दायरे का विस्तार करना; 27 मिलियन छात्रों को 12 वर्ष की गुणवत्तायुक्त स्कूली शिक्षा प्रदान करना; तथा स्कूल और कॉलेज नहीं जाने वाले 31 मिलियन युवाओं के लिए शिक्षा तथा प्रशिक्षण के अवसरों को बेहतर बनाना।

2. रिपोर्ट के अंतर्गत इस एजेंडे के मूल कारणों एवं इसकी विभिन्न विशेषताओं तथा एक-दूसरे पर निर्भर इसके तीन लक्ष्यों का वर्णन प्रस्तुत किया गया है; साथ ही भारत की कमज़ोर मुस्लिम आबादी के विकास एवं उनकी शिक्षा में बदलाव को लागू करने से जुड़े विभिन्न मुद्दों को स्पष्ट रूप से दर्शाया गया है। ग़रीब तबके के 25 साल से कम उम्र के मुस्लिम युवाओं की आबादी 79 मिलियन है, जो फ्रांस, इटली या दक्षिण अफ़्रीका की आबादी से कहीं अधिक है।

3. इस बड़ी चुनौती को पूरा करने की प्राथमिक जिम्मेदारी केंद्र, राज्य और उप-राज्य स्तर की सरकारों की है, जिनके पास इसके लिए आवश्यक मानव एवं वित्तीय संसाधन तथा बड़े पैमाने पर जनसंपर्क के लिए संस्थागत क्षमता मौजूद है। गौरतलब है कि, वर्तमान में कोविड-19 महामारी की वजह से यह चुनौती और भी कठिन हो गई है।

4. अंत में, रिपोर्ट में इस एजेंडे को लागू करने में मुस्लिम संगठनों तथा सिविल सोसाइटी की बेहद आवश्यक भूमिका को भी उजागर किया गया है। इसमें मुख्य रूप से दो तरह के सुझावों की सूची प्रस्तुत की गई है: एजेंडे को समर्थन देने से जुड़ी गतिविधियाँ - मुख्य रूप से यह सुनिश्चित करने पर केंद्रित है कि सरकार अपनी जिम्मेदारियों को अच्छी तरह से पूरा करे - साथ ही शिक्षा के लिए समुदाय आधारित पहल की शुरुआत, ताकि इस एजेंडे के तीनों लक्ष्यों को प्राप्त करना संभव हो सके।

शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव लाने वाले इस एजेंडे के ज्ञान और अनुभवात्मक आधार की 3 विशेषताएँ इस प्रकार हैं:

1. माध्यमिक शिक्षा के विभिन्न स्रोतों के आधार पर विश्लेषण: जिसमें उपयोगी किताबें, आधिकारिक रिपोर्ट, विकास एवं शिक्षा के संदर्भ में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के आँकड़े, आदि शामिल हैं।

2. बड़े पैमाने पर वंचित समुदाय की शैक्षणिक स्थिति को बेहतर बनाने के लिए क्या किया जाना चाहिए, इस विषय पर बीते तीन दशकों में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहमति बनी है।

3. शिक्षा के क्षेत्र में एक शोधकर्ता के रूप में लेखक को तीन दशकों का अनुभव प्राप्त है, तथा देश के ग्रामीण एवं शहरी इलाकों में 25 साल से कम उम्र के ग़रीब बच्चों, छात्रों और युवाओं के विकास एवं शिक्षा में सुधार के लिए भारत के विभिन्न राज्यों में छोटी व बड़ी स्तर की परियोजनाओं के निर्देशन में उनकी सक्रिय भागीदारी रही है। इसके अलावा, उन्होंने राज्य, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के निकायों द्वारा आयोजित विभिन्न परिचर्चाओं में भी भाग लिया है।

यह रिपोर्ट एक समर्पित वेबसाइट educationofmuslimsindia.org पर अपलोड की गई है, जो 2019 की पिछली रिपोर्ट का काफ़ी संक्षिप्त एवं अद्यतन संस्करण है।